हमारा देश एक संवैधानिक ओर बराबरता के अधिकार को मुख्य रख कर चलने वाला देश है। भारत देश में बहु-धर्मो,जातों एंव प्रांतो के लोग बसे हुए हैं।शायद यही हमारे देश की कुल दुनिया मे प्रसिद्धि का कारण भी है। हां,यह बात अलग विषय रखती है की हमारे मुल्क की राजनीति ने हमे अपने हिसाब से बांटा हुआ है।परंतु हमारे देवी-देवताओं, गुरुओं तथा पैगंबरो ने तो हमे सिर्फ ओर सिर्फ ऐकता ओर बराबरता का पाठ ही पढाया है। परंतु कुछ बाते इस तरह की हैं जिनकी हकीकत जाने बिना ही हमारे देश मे फैसले लिए गए।जिसके साथ हमारे देश की बराबरता ओर एकाधिकार जैसी बात को गहरी चोट पहुंची। ओर कई परिवार इसका दर्द अपने ह्रदय मे समेट कर बैठे हैं। यह बात उन परिवारो की है जो कि सिर्फ ओर सिर्फ नाम के ही जनरल हैं,जिनका सिर्फ जनरल श्रेणी भाव “उच्च श्रेणी” मे जन्म लेना ही उनका ओर उनके परिवार का पेट नही भर सकता।अथवा उनकी भूख नही मिटा सकता। गरीब आदमी चाहे वह किसी भी श्रेणी से क्यों न हो उनकी हालत बहुत ही गंभीर एंव तरसयोगय है। ओर यह कई दशकों से ही तरसयोगय बनी हुई है। आम समाज मे समय के अनुसार बदलाव आया है परंतु इन गरीब लोगो के घर मे हमेशा से ही “वही चूल्हा ओर “वही आग” रही है। भारत जैसे बड़े देश मे अनेकों ही जनरल श्रेणी से संबंधित परिवार हैं जिनके पास कमाई का कोई भी मुख्य साधन नही है,वह “दिहाड़ी- मजदूरी” करके अपना ओर अपने बच्चो का पेट पाल रहे हैं। परंतु वह जनरल श्रेणी मे आने के कारण ही दूसरे गरीब लोगो को मिलने वाली सभी सहूलियतों से वंचित रह जाते है।हमारी सरकारों ओर उच्च-संस्थानों के यह फैसले कभी भी संवैधानिक नही हो सकते,जो किसी दूसरे गरीब से उसका ‘बनता-हक’ ही शीन लें वह भी सिर्फ उनकी श्रेणी के आधार पर। हमारे समाज की यह धारणा क्यो बनी हुई है कि जो भी व्यक्ति “जनरल कास्ट” मे जन्म ले रहा है, वह बहुत सुखी है। दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले यह श्रेणी के जनरल अथवा हालातों से पिछड़े लोग ‘सिर्फ ओर सिर्फ’ अपनी श्रेणी के कारण ही सरकार से मिलने वाली सहूलियतो से वंचित रह जाते है।जो सहूलियते उनका “जीवन-स्तर” सुधारने के लिए बहुत आवश्यक है,परंतु श्रेणी के कारण सहूलियत कोई मिल नही रही, इसी कारणवश वह समाज से ‘दिन-प्रतिदिन’ पिछड़ते जा रहे है। चलो,भगवान् करे वह दिहाड़ी-मजदूरी करके अपने बच्चो को पढा भी ले ओर बच्चे अच्छे से पढकर मैरिट मे भी आ जाए।तो भी उनके साथ उनकी शिक्षा के आधार पर नही बल्कि उनको मिले ‘कोटे’ के हिसाब से ही ववहार किया जाता है ओर उन्हे पीछे भेंक दिया जाता है।”भाव” समाज से पिछाड़ दिया जाता है।आज जनरल श्रेणी के दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले परिवार हमारे समाज की मुख्य-धारा से 20 साल पीछे चल रहें हैं।क्योंकि श्रेणी के कारण उन्हे सरकार की दूसरे गरीबो को मिलने वाली कोई सहायता ही नही मिल पाती,जो उनकी जीवन शैली में थोड़ा सुधार ला सके। मैं किसी भी दुसरी श्रेणी के गरीब से उसका हक छीनने को नही बोल रहा।परंतु हमारी सरकारों ओर उच्च-संस्थानो को यह भी सोचना चाहिए कि गरीबी किसी की भी श्रेणी,जात यां धर्म देखकर नही आती ओर ना ही किसी को भुख श्रेणियों के आधार पर लगती है।श्रेणियों के आधार पर ऐसा व्यवहार जो किसी का ‘हक’ छीन रहा हो।यह हमारी आने वाली नस्लों के लिए कतई भी अच्छा नही होगा।यह समाज मे विरोधता की भावना पैदा करेगा।इसी लिए मैं सभी को बराबरता देने वाले कानून का समर्थक हुं, कि सभी का एकाधिकार हो, ना कि किसी की “कैटिगरी” के आधार पर उसका बनता-हक छीन लिया जाऐ।नही तो तब तक अपनी किस्मत से लाचार “श्रेणी के जनरल परंतु अपने हालातों से पिछड़े गरीब लोगो” की बात होती रहेगी।
लेखक:- रणजीत सिंह हिटलर
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