
गुजरात / वापी । कोरोना की वजह से कारोबार में जो मंदी छाई है वह कितनों को ले डूबेगी यह तो आने वाला समय बताएगा। वैसे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर बनने की सलाह देकर यह तो स्पष्ट कर ही दिया है की जो भी करना है जनता को सवय करना, लेकिन जनता भी क्या करें और कितना करें। एक तरफ रोज़मर्रा के खर्चे तो दूसरी और दिन ब दिन बढ़ता टैक्स। बाजार में कोरोना की वजह से छाई मंदी का असर अब धीरे धीरे दिखने लगा है। ऐसे कई कारोबार है जो पूरी तरह ठप्प पड़े है, कुछ कारोबार चल तो रहे है लेकिन उनसे उतनी आम्दानी भी नहीं हो रही है जिससे कारोबारी अपनी रोज़मर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। ऐसे में रियल स्टेट कारोबार को लेकर एक चौकने वाली जानकारी सामने आई है।
प्रोपर्टी कन्सल्टन्ट नाइट फ्रेन्ड के रिपोर्ट के अनुसार पिछले 6 महीने में अर्थात कि जनवरी से जून की अवधि में मकानों, दुकानों के विक्रय में भरी कमी आई है। इस अवधि में विक्रय सिर्फ 59,538 युनिट हुआ था। जो गत वर्ष के इस अवधि दौरान विक्रय की तुलना में 54 प्रतिशत की कमी दर्शाता है। इससे भी अधिक चौकने वाली बात यह है कि 6 महीने के अवधि में इतना कम विक्रय पिछले एक दशक में पहली बार हुआ है। मतलब की रियल एस्टेट कारोबार पिछले 10 वर्षों के निचले स्तर पर पहुँच गया है। नाइट फ्रेंड इंडिया द्वारा 6 महीने की अवधि का आंकड़ा लिया गया, इस रिपोर्ट में देश के आठ बड़े शहरों में मकानों का विक्रय जनवरी-मार्च की अवधि में 27 प्रतिशत घटकर 49,905 युनिट हुआ था। इन आठ शहरों में अहमदाबाद, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंग्लोर, पुणे और हैदराबाद का समावेश है।
अप्रैल से जून के तिमाही अविध में स्थिति और अधिक खराब हो गई, इस अवधि में पूरे देश में लॉकडाउन का कड़ाई से अमल हुआ था। पिछले 6 महीने की अवधि में नए मकानों के प्रोजेक्ट लॉन्च में भी 40 फीसदी की कमी देखी गई। मकानों की औसत विक्रय कीमत भी घटी। एनसीआर में 5.8 प्रतिशत, पुणे में 5.4 प्रतिशत और चेन्नई में 5.5 प्रतिशत भाव घटे। रिपोर्ट के अनुसार बड़े शहरों में ऑफिस स्पेस लीजिंग भी जनवरी से जून की अवधि में घटकर 10 वर्ष के निचले स्तर पर आ गई है। जनवरी-मार्च की अवधि में ऑफिस लीजिंग 1 प्रतिशत घटकर 146 लाख चौरस फुट हुआ था। जबकि अप्रैल-जून की अवधि में 70 प्रतिशत घटकर 26 लाख चौरस फुट हुआ था।
यदि वलसाड, वापी, दमण तथा सिलवासा की कई बड़ी बड़ी निर्माणाधीन इमारतों की बात करें तो यहाँ भी काम-काज या तो ठप्प पड़ा है या फिर कछुआ चाल में चल रहा है। इतना ही नहीं मंदी के कारण निवेशक बुकिंग रद्द कर बिल्डर को दिया गया धन वापस मांग रहे है। ऐसा इस लिए क्यों की अधिकतर लोग मकान-दुकान-फ्लेट जैसी प्रॉपर्टी अपनी-अपनी आम्दानी के अनुसार, लोन पर लेते है। लेकिन कोरोना ने आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ साथ उसकी आम्दानी पर भी अटैक किया है, ऐसे में जाहीर सी बात है जब आम्दानी ही नहीं है तो फिर कैसा लोन और केसी प्रॉपर्टी?
आधे किराए में भी लेने वाला कोई नहीं…
दरअसल सब कुछ बाजार पर निर्भर करता है बाजार में दुकानों पर ग्राहक नहीं होंगे तो नई दुकाने नहीं खुलेगी और नई दुकाने नहीं खुली तो निर्माणाधीन इमारतों में दुकानों की खरीद नहीं होगी। बाजार में मंदी इस कदर है की कई दुकान मालिकों ने सवय ही पहल करते हुए अपने अपने किराएदारों को किराया कम करने को कहा है और कहा है की अगर कम किराया अदा करने का बंदोबस्त ना हो तो भी वह फिक्र ना करें और दुकान खाली ना करें, उन पर समय पर किराया देने का दबाव नहीं डाला जाएगा। वही दूसरी और जिनहोने किराया ना होने के कारण दुकाने खाली कर दी है अब वह दुकाने आधे किराए में भी लेने वाला कोई नहीं मिल रहा, ऐसे में निर्माणाधीन इमारतों में ऊंचे दामों पर बिकने वाली दुकानों में नया निवेश काफी मुश्किल लगता है।
निवेशकों को उनका पैसा वापस कैसे मिलगा…
सवाल यह भी है की क्या बिल्डर निवेशकों को पैसा लौटाने की स्थिति में है भी या नहीं? यह सवाल इस लिए क्यों की सभी जानते है बिल्डर निवेशक से जितनी रकम लेता है उतनी रकम के कागजात तैयार नहीं होते और बिल्डर निवेशकों के बुकिंग के पैसे से दूसरे प्रोजेक्ट के लिए जमीन खरीद लेता है तो फिर ऐसे में निवेशकों को उनका पूरा पैसा वापस कैसे मिलगा? रेरा नियमों के अनुसार जब बिल्डर किसी से बुकिंग के लिए रकम लेता है तो वह सारी रकम उसे उसी प्रोजेक्ट में लगानी होती है, लेकिन जिन निवेशकों ने बिल्डर को ब्लेक मनी देकर बुकिंग की उन निवेशकों की ब्लेक मनी, बिल्डर किसी अन्य प्रोजेक्ट में लगा दे तो रेरा नियम भी क्या करेगा? निवेशक कैसे साबित करेंगे की उन्होने कब और कितनी रकम देकर बुकिंग की थी और उन्हे बिल्डर ने कब कब्जा देने का वादा किया है। समस्या एक नहीं है यदि निवेशक बिल्डर से बुकिंग रद्द कर, पैसा वापस मांगे तो उसके पास ब्लेक मनी के लेन-देन का कोई सबूत भी नहीं होगा, ऐसी स्थिति में निवेशक का पैसा डूब गया तो वह अपना पैसा कैसे वसूलेगा यह भी एक बड़ा सवाल है।
इस लिए कुछ बिल्डर कीमतें कम करना चाहते है…
सूत्रों की माने तो कुछ दिन पहले कुछ बिल्डर अपने प्रोजेक्टों में निवेशकों को आकर्षित करने हेतु कीमत कम करना चाहते थे। लेकिन कुछ बिल्डरों के कीमत कम करने से, अन्य सभी बिल्डरों को कीमतें कम करनी पड़ेगी। यह सोच कर बिल्डरों ने एक मीटिंग की तथा जो बिल्डर कीमत कम करना चाहते थे उन पर कीमत ना कम करने का दबाव बनाया। जानकारों की माने तो आज नहीं तो कल बिल्डर को भाव घटाने ही पड़ेंगे और ऐसा नहीं हुआ तो निर्माणाधीन इमारतों में प्रॉपर्टी का खरीदार ढूँढना काफी मुश्किल होगा। ऐसा इस लिए भी क्यों की बिल्डर यदि किसी से बुकिंग लेते है तो उसे कब्जा ( पजेशन ) देने की तारीख भी बताते है ऐसे में यदि किसी इमारत में नई बुकिंग नहीं आती तो केवल एक-दो बुकिंग के लिए और उसके कब्जा ( पजेशन ) के लिए बिल्डर पूरी इमारत का निर्माण तो नहीं कर सकता। कुल मिलाकर यह कह सकते है की आने वाला समय अभी अपने कई नए रंग दिखने वाला है और जब तक बाजार पुनः पटरी पर नहीं आता तब तक जनता को कोरोना के साथ साथ आने वाले समय में कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है। खेर इस समस्या का समाधान क्या है और कारोबारी आर्थिक समस्या का हल कैसे ढूँढे इसके बारे में तो सरकार को ही कोई हल निकालना पड़ेगा।