
वापी। गुजरात के वलसाड जिले में वलसाड जिला समाहर्ता का कार्यालय है जो की वापी से काफी दूर है वापी से वलसाड तक उधोगिक इकाइयों की जहरीली गैस पहुँचती है या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन यदि वलसाड जिला समाहर्ता को वापी की जनता की समस्या ओर स्वास्थ्य की चिंता है तो उन्हे अपना कार्यालय कुछ दिनों के लिए वापी जी-आई-डी-सी में सिफ्ट कर देना चाहिए जिससे या तो वापी से उधोगिक इकाइयों का प्रदूषण खत्म हो जाएगा या फिर जीपीसीबी के ऊंची पहुँच वाले अधिकारी जिला समाहर्ता का तबादला करवा कर समाहर्ता को भी यह एहसास करवा दे की वह भी जनता की तरह सिर्फ खुली आँखों से प्रदूषण देख सकते है कर कुछ नहीं सकते! अब यह किस लिए कहा जा रहा है तो यह जानने के लिए वलसाड जिला समाहर्ता को वापी जीपीसीबी के अधिकारियों का इतिहास ओर भूगोल टटोलना होगा, उनकी संपत्ति ओर अड़ियलता की टोह लेनी होगी, पूर्व में कितना कमाया और अब कितनी चाँदी काट रहे है इसकी जांच करनी होगी, तब जाकर उन्हे पता चलेगा की जनता ऐसा क्यों कहती है।
खेर जहां एक और उधोग कारखाने ठप्प पड़े है वही वापी में कई केमिकल्स इकाइयां इस मंदी में भी शिखर की और बढ़ रही है जो अच्छी खबर है लेकिन यदि इकाइयों की उन्नति की नीव यदि बार बार पर्यावरण की कब्र पर ही रखी जाएगी तो इससे आने वाले समय में जनता को होने वाले नुकसान का आंकलन भी प्रशासन को अभी से कर लेना चाहिए। यह इस लिए भी क्यों की कोरोना की महामारी के इस दौर में सरकार इम्यूनिटी बढ़ाने पर ज़ोर दे रही है लेकिन जहरीली गैस के साएँ में जनता इम्यूनिटी कैसे बढ़ाए इसका जवाब तो अब सरकार सवय दे।
कुछ समय पहले वापी के बड़े बड़े उधोगों के प्रदूषण का मामला एन-जी-टी पहुंचा, बड़ा दण्ड भी वसूला गया कुछ दिन सब ठीक रहा। लेकिन आज यह ताजा तस्वीरे बयां करती है की इकाइयों को किसी नियम की कोई परवाह नहीं, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण समिति के नियम हो या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति के नियम या फिर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित नियम, इकाइयां किसी की अवहेलना ओर अवमानना करने से नहीं कतराती।
वापी में अभी भी सेकड़ों ऐसी इकाइयां है जिनके बाहर डिस्प्ले बोर्ड तक नहीं ऐसी इकाइयों को जीपीसीबी किस आधार पर कनसंट देता है इस सवाल का जवाब तो अब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वापी जीपीसीबी के अधिकारियों से मांगना चाहिए। वैसे यदि जिला समाहर्ता चाहिए तो वह अवश्य उक्त मामले में वापी को प्रदूषण से निजात दिला सकते है बशर्ते उन्हे एक पर्यावरण प्रेमी की नजर से मामले को देखना होगा।