
आज देश की जो स्थिति है उसका जिम्मेदार कौन है? जीवनरक्षक दवाओं की ऐसी कालाबाजारी इससे पहले किसी ने नहीं देखी होगी। ताज्जुब तो इस बात का है की सरकार के पास पूरा सिस्टम है कालाबाजारी रोकने के लिए अलग से विभाग है, अधिकारियों की टीम है लेकिन सब फेल साबित हुए, जिसका एक कारण बड़ा भ्रष्टाचार है। जैसे शराब बंदी राज्यों में भ्रष्टाचार के दम पर, जनता खुलेआम शराब की तस्करी होती देखती रही वैसे ही दवाओं की तस्करी भी जनता ने देख ली। मास्क ना लगाने पर आम जनता का सरकार क्या हश्र करती है जनता ने यह भी देखा और कलाबजरियों और भ्रष्टाचारियों द्वारा जान के बदले माल की मांग करने पर क्या होता है वह भी देखा। 40 से 50 हजार रुपये में ऑक्सीज़न, 25000 रुपये में रेमेडिसविर इंजेक्शन, 300 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से एम्बुलेंस, इस तरह की कालाबाजारी के पीछे भ्रष्टाचार नहीं है यह कहना तो सरासर गलत होगा। पता तो यह लगाना चाहिए की किसने कितनी कालाबाजारी की और किसके सहयोग से की? जनता जानती है की सरकारी अधिकारी या नेताओं के संरक्षण के बिना यह सब मुमकिन नहीं है, लेकिन जनता भी क्या करें, उसे कहा गया था की भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाएँगे, उसे क्या पता था उससे उसकी जान बचाने के लिए मनमानी कीमत वसूली जाएगी और सरकारे तमाशा देखती रहेगी।
20 लाख करोड़ कहा गए?
कोरोना की आड़ में जनता की जेबों पर कैसे डाका डाला गया यह तो सबने देखा। 40 से 50 हजार रुपये में ऑक्सीज़न, 25000 रुपये में रेमेडिसविर इंजेक्शन, 300 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से एम्बुलेंस, यह सब तो सरकारों ने और जनता ने टीवी चेनलों पर तथा सोशल मीडिया पर देख लिया, लेकिन क्या सरकार यह जानती है की आम जनता यह पैसे कहा से लाई होगी? इतने ऊंचे दामों पर ऑक्सीज़न, दवाएं, इंजेक्शन और एम्बुलेंस के लिए उसे कितने लोगो के सामने हाथ फैलाने पड़े होंगे? यह सब खरीदने के लिए किसी ने अपने जेवर बेचे होंगे, किसी ने अपने वाहन बेचे होंगे, किसी ने अपनी जमीन, मकान, दुकान बेचे होंगे? ऐसे भी कई लोग होंगे जिनको ऑक्सीज़न, दवाएं, इंजेक्शन, एम्बुलेंस जैसी सेवाओं की आवश्यकता पड़ी होगी लेकिन धन की कमी और गरीबी के चलते वह यह सब खरीद ही ना पाए हो? क्यों की गरीब को तो कर्ज भी बामुश्किल मिलता है। पिछले कोरोना काल में सरकार ने 20 लाख करोड़ देने का दावा किया वो 20 लाख करोड़ कहा गए?
भारत में दवा ना खरीद पाने की वजह से कुल कितने लोग मरे?
अब तक कोरोना से जितने लोग मरे है, उनमे कितने गरीब है? कितने मध्यमवर्गीय आय वाले है? और कितने अमीर है? क्या सरकार इसके आंकड़े उपलब्ध करा पाएगी? यह सवाल इस लिए क्यों की दवा उपलब्ध होने के बाद भी उस दवा को ना खरीद पाने की वजह से यदि किसी गरीब की जान चली जाए, तो फिर उसके लिए कसूरवार किसे माना जाए? क्या भारत के सविधान या कानून के किसी पन्ने में इस सवाल का जवाब है?
भारत की जनता कलाबजरियों का पेट भरने के लिए काला धन कहा से लाए?
सरकार गरीबों के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सेवालों के लिए टैक्स लेती है क्यों की अमीर सरकार की मुफ्त सेवाओं पर निर्भर नहीं रहते। अमीर तो शायद 50 हजार की बजाए 5 लाख में भी ऑक्सीज़न खरीदने की कुबत रखते हो! लेकिन उन करोड़ों गरीब भारतीयों का क्या जो दिन रात एक एक रुपया कर सरकार की तिजोरी भरते है, वह कलाबजरियों का पेट भरने के लिए काला धन कहा से लाए? माना की ज्यादा टैक्स बड़े बड़े उधोगों से आता है जो अमीरों के है लेकिन उन उधोगों से निर्मित समान पर तो टैक्स देकर गरीब खरीदते है। आम जनता की सभी समस्याओं के बारे में चंद शब्दों में बयां करना बामुश्किल है लेकिन सभी समस्याओं के समाधान की शुरुआत देश को भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाकर की जा सकती है हालांकि यह नारा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का काफी पहले दिया हुआ है लेकिन यदि जनता चाहे तो स्वय अपने आस पास हो रहे भ्रष्टाचारियों का भंडाफोड़ कर समस्याओं के समाधान की शुरुआत कर सकती है। क्यों की भ्रष्टाचार तो अब भी जारी ही होगा, जनता जानती है अधिकारी कितने कमीशंखोर होते है क्या वह भ्रष्ट अधिकारी कोरोना काल में दवाओं और अन्य वस्तुओं की खरीद में कमीशन नहीं ले रहे होंगे? आज देश की जनता जिस समस्या से जूझ रही है उस समस्या की जड़ भले ही ना सही लेकिन एक तना तो अवश्य भ्रष्टाचार का है।