शिकायतकर्ता तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के बाद, अब निष्पक्ष पत्रकारिता पर भी बढ़ता दबाव, चिंता का विषय!

चाटुपत्रकारिता की आदि प्रशासन का निष्पक्ष पत्रकारिता पर बढ़ता दबाव। लुप्त होते शिकायतकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ताओं के भगवाकरण की अजब कहानी। | Kranti Bhaskar
Daman Press

वैसे तो देश के कई हिस्सो में आज की पत्रकारिता के विषय में अगल अलग लोगो की अलग अलग राय देखने को मिलती है, लेकिन पत्रकारिता का एक सच यह भी है जिससे जनता अछूती है या यू भी कह सकते है की इस मामले में जनता को अभी तक पूरी जानकारी नहीं है।

वह है दबाव, शाजिश और हत्या, इन तीनों मामलों के आए दिन ईमानदार पत्रकार शिकार होते देखे जाते है, जनता की आवाज बनकर सच लिखने वाले को किस दौर से गुजरना पड़ता है उसका रत्तीभार भी जनता को एहसास ना हो, खबर को दबाने के लिए तथा पत्रकार को ठिकाने लगाने के लिए हर मुमकिन प्रयास किए जाते रहे है कभी प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा तो कभी बाहुबलियों द्वारा, पत्रकार तथा पत्रकारिता पर दबाव बनाने के प्रयास होते रहे है, इतना ही नहीं ऐसे भी कई मामले है जिनमे ईमानदार पत्रकारो ने पत्रकारिता पर दबाव स्वीकार नहीं किया तो उन्हे जान से मार दिया गया।

पत्रकार की हत्याओं के पीछे मकसद हमेशा उस पत्रकार तथा जनता की आवाज को दबाने का रहा, जब कोई पत्रकार किसी का पर्दाफास करता है तब उसे पता होता है की जिसका पर्दाफास वह कर रहा है वह उसकी हत्या भी कर सकता है, लेकिन समाज और जनता से किए वादे के तहत वह ईमानदारी से पत्रकारिता करते करते इस दुनिया से चला जाता है और प्रशासन मातमपुर्सी कर मामले में जांच के अलावे कुछ नहीं करती!

संध प्रदेश दमन-दीव व दानह से पत्रकारिता तथा पत्रकारिता पर दबाव के संबंध में कुछ चोकाने वाली जांकारिया मिली है। संध प्रदेश दमन-दीव व दानह में प्रशासक पद पर प्रफुल पटेल की नियुक्ति के बाद, दमन-दीव व दानह के सरकारी विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार तथा अनियमीता में अब तक तो कोई खास कमी आती नहीं देखी गई, हा भ्रष्टाचार तथा अनियमितताओं में कितना इजाफा हुआ उस पर अवश्य किसी अन्य अंक में विस्तार से चर्चा करेंगे। किन किन कथित भ्रष्ट अधिकारियों पर प्रशासक प्रफुल पटेल ने अपनी मेहरबानी दिखाई उस पर भी किसी अन्य अंक में विस्तार से चर्चा करेंगे।

फिलवक्त तो बात करते है अदृश्य होते सामाजिक कार्यकर्ताओं कि, शिकायतकर्ताओं की तथा प्रशासन एवं प्रशासक के नेतृत्व में रचित शडियंत्रों के भय से बाधित होती पत्रकारिता की, चाहे सामाजिक कार्यकर्ता हो, शिकायतकर्ता हो या पत्रकार, तीनों ही प्रशासन के शाम-दाम-दण्ड-भेद वाली नीति का शिकार दिखे। 

आलम यह रहा कि भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के खिलाफ उठने वाली कई आवाज़े धीरे-धीरे सन्नाटे में बदल गई, और अखबारो में भी जनता के लिए पूछे जाने वाले, पत्रकारो के सवालो की जगह, प्रशासन की उपलब्धियों,उत्सवो तथा विज्ञापनों ने ल ली। यह सब इतनी जल्दी हुआ, तथा इस अंदाज में हुआ जिसे शब्दो में बयान करना मुश्किल है।

किसी को भाजपा में शामिल कर के उसका मुह बंद कर दिया गया, तो किसी को प्रशासन की किसी कमिटी में शामिल कर उसे भी प्रशासन का हिस्सा बना दिया, किसी को उसके पुराने कारनामों की करनी दिखा-कर डरा दिया गया, तो किसी को सरकारी मामलों में तथा शडियंत्रों में फसाकर, उलझाकर व्यस्त कर दिया गया, शाम-दाम-दण्ड-भेद के बारे में सुना तो बहोत था, लेकिन इसका उपयोग कैसे किया जाता है और किस हद तक किया जाता है यह प्रशासक प्रफुल पटेल के नेतृत्व में काम करने वाली प्रशासन की कुत्सित कार्यप्रणाली को देखकर पता चला।

इतना ही नहीं इस प्रशासन ने उस पत्रकारिता को भी नहीं बखसा जिसे लोक तंत्र का चोथा स्तंभ कहां जाता है, ऐसा नहीं है की किसी अखबार या पत्रकार को किसी प्रकार की सीधी चेतावनी या धम्की मिली है लेकिन जन प्रतिनिधियों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं की चुप्पी और उनमे हो रही गुसर-फुसर ने इतनी चेतावनी तो अवश्य दे दी तथा इतना आगाह तो अवश्य कर दिया की यदि प्रशासन की पोल खोलने का काम किया तो प्रशासन की सारी मशीनरी उनके पीछे ठीक उसी तरह छोड़ दी जाएगी जैसे अब तक उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए छोड़ी गई है।

फिर क्या था जनता की आवाज बनकर सच्चाई का आईना दिखाने वाले सवय ही प्रशासन के इस रवैये से भय-भीत होकर प्रशासन की हा में हा मिलते देखे गए, या फिर चाटुपत्रकारिता करते करते वह पत्रकार इतने व्यस्त हो गए की उन्हे अंदाजा ही नहीं रहा की जनता के विश्वास के साथ साथ वह अपने फर्ज का भी गला घोट रहे है।

आलम यह रहा की आखबारों में छपी ख़बरे को पढ़कर जनता अखबार की कीमत और ओकात आकने लग गई, किसी ने ठीक ही कहाँ है कि जनता जनार्धन है वो सब जानती है तो इसी जनार्धन में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई कोई जनता की तकलीफ़ों से किनारा कर कैसे चंद चाटुपत्रकारिता करने वाले कैसे केवल प्रशासन की उपलब्धियों को गिना रहे है, जनता जनार्धन को यह भी पता है की इसका कारण क्या है, लेकिन इस वक्त यदि इस मामले में विस्तार से चर्चा की तो वह मामला अधूरा जिसके बारे में आज हम बात कर रहे है।        

वैसे दमन-दीव व दानह प्रशासन जब शाम-दाम-दण्ड-भेद का प्रयोग कर रही थी, तब क्रांति भास्कर की टिम अपनी खोजी पत्रकारिता से यह पता लगा रही थी की आखिर मामले में हकीकत कितनी है और इस मामले में सबूत कैसे और कहां से जुटाए जाए, तब क्रांति भास्कर को सबूत की पहली सीढ़ी के रूप में दमन-दीव व दानह का एक वरीय अधिकारी मिला।

इस वक्त क्रांति भास्कर उस अधिकारी का नाम सार्वजनिक नहीं कर रही है ताकि उस अधिकारी पर इस वक्त प्रशासन की और से कोई दबाव ना बनाया जाए, एक मामले में क्रांति भास्कर उस अधिकारी से, प्रशसाक प्रफुल पटेल से जुड़े एक मामले का सच जानने पहुची।

हालांकि क्रांति भास्कर का असली मकसद तो यह जानना था की वास्तव में दमन-दीव व दानह के सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाने के साथ साथ पत्रकारिता पर दबाव बनाने की बात वाले मामल में कितनी सत्यता है, तथा प्रशासन एवं प्रशासक प्रफुल पटेल के नेतृत्व में जिन शडियंत्रों को रचकर प्रशासन के खिलाफ उठने वाली आवाज को दबाने की चर्चा हो रही है उसमे कितनी सत्यता है।

फिर क्या था क्रांति भास्कर  जो जानना चाहित थी वह जान गई, उस वक्त उस अधिकारी ने यह साफ बता दिया था की प्रशासन तथा प्रशासक प्रफुल पटेल के खिलाफ जाने का जो भी साहस करेगा, उसका अंजाम बड़ा भयानक होगा, प्रफुल पटेल के पास दमन-दीव व दानह प्रशासन की सारी-मशीनरी है तो है ही इसके अलावे गुजरात प्रशासन की सारी-मशीनरी का इस्त्माल भी उन तमाम आवाजों को दबाने के लिए किया जाएगा जो प्रशासक प्रफुल पटेल तथा दमन-दीव व दानह प्रशासन के खिलाफ उठेगी।    

यह सभी जानकारी देने के साथ साथ क्रांति भास्कर को यह भी बताया गया की अपनी तथा अपनी टिम की सलामती चाहिते हो तो प्रशासक प्रफुल पटेल के किसी भी अच्छे या बुरे फैसले के खिलाफ जाने का साहस नहीं करना अन्यथा नतीजा इतना भयंकर होगा जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते,  अंत में उस वक्त उस अधिकारी ने कुछ उदाहरण तथा नमूने भी पेश किए गए, की कैसा-कैसा और क्या-क्या हो सकता है, उस वक्त यह भी बताया की अब आने वाले समय में दमन-दीव व दानह में किस किस का क्या-क्या होने वाला है तथा कैसे उसका मुह बंद किया जाने वाला है, आपको जानकार हैरानी होगी महज चंद दिनों में ही जैसा उस अधिकारी ने बताया, जिसके बारे में बताया, उसके साथ बादमे वैसा ही होता पाया गया।    

इस पूरे मामले में जब उस अधिकारी के साथ बात-चित हुई तब मन में यह सवाल भी उठा था की क्या यह एक सुझाव है चेतावनी है या धम्की, सवाल यह भी उठा था की क्या अन्य पत्रकारो को भी इस प्रकार की चेतावनियाँ, सुझाव तथा धमकियाँ मिल चुकी है, सवाल यह भी उठा की क्या क्रांति भास्कर के पत्रकारो को फसाने के लिए भी प्रशासन प्रयास कर रही है? यह सवाल इस लिए उठा क्यों की संध प्रदेश दमन-दीव व दानह के दर्जनों अधिकारियों के भ्रष्टाचार का खुलासा क्रांति भास्कर कई बार कर चुकी है इसके अलावे ऐसे कई माफिया भी है जिनके चेहरे से क्रांति भास्कर की पत्रकारिता ने, नेता का मुखोटा निकालर जनता के सामने सच रखा, आगे भी क्रांति भास्कर अपनी तीखी सच्ची और ईमानदार पत्रकारिता के लिए प्रतिबद्ध है।

उस अधिकारी के लिए क्रांति भास्कर के मन में सवाल तो कई थे, लेकिन फिर इस मामले में उस अधिकारी से अधिक सवाल करने के बजाए क्रांति भास्कर ने उस वक्त तो इस मामले में अधिक से अधिक जानकारी बटोरना ही उचित समझा और उन तमाम उदाहरणों की रिकॉर्डिंग क्रांति भास्कर ने संभाल कर रखी ली।

अब प्रशासन के खिलाफ खड़े होकर तथा जनता के हकों की बात करने वाले पत्रकारो को, यदि प्रशासन अपने रचित शडियंत्रों में फसाने के भरपूर प्रयास करने में लगी है तो फिर दिखती बात है की अब भारतीय प्रेस परिषद को भी पत्रकारिता को बचाने तथा पत्रकारिता पर बढ़ते दबाव को समाप्त करने के लिए भरपूर प्रयास करने में लग जाना चाहिए, और ऐसा कुछ सोचना चाहिए जिससे प्रशासन द्वारा पत्रकारो के खिलाफ रचे जाने वाले वाले उन तमाम श्डियंत्रों पर हमेशा हमेशा के लिए अंकुश लग सके।