दादरा नगर हवेली के ग्राम पंचायत में स्थित शॉपिंग सेंटर की दुकानों का वर्षों से भाड़ा ना भरने का एक मामला प्रकाश में आया है। उक्त जानकारी राजेश हलपति ने सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त की है। ग्राम पंचायत दादरा द्वारा दी गई इस जानकारी के अनुसार शॉपिंग सेंटर में स्थित 35 दुकाने है जिनमे से कई दुकानों का भाड़ा वर्ष 2003 से बाकी बताया जाता है।
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार दुकान नंबर 4 का भाड़ा ( प्रतिमाह 1025 रुपये ) फरवरी 2003 से बाकी है। इस दुकान की किराएदार मनीषाबेन कमलेश देसाई है जो की दादरा उप सरपंच की पत्नी बताई जाती है उसी तरह दुकान नंबर 13 का भाड़ा ( प्रतिमाह 603 रुपये ) फरवरी 2003 से बकाया है, यह दुकान दादरा ग्राम पंचायत की सदस्य दर्शनाबेन के पुत्र अर्पण अशोक देशाई की बताई जाती है। इसके अलावे शॉपिंग सेंटर में कई अन्य दुकानों का भाड़ा वर्षो से बकाया बताया जाता है। यह बड़ी हैरानी की बात है की शॉपिंग सेंटर के किराएदार पिछले 15-16 वर्षो से दुकानों का किराया नहीं दे रहे है और पंचायत भी उक्त जानकारी को सूचना के अधिकार के तहत जनता के सामने ऐसे रख रही है जैसे कोई मेडल जीत लिया हो।
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से यह भी स्पष्ट होता है की पंचायत के साथ, जिला पंचायत और समाहर्ता को भी इस मामले की जानकारी है, अब जानकारी होते हुए भी किराया वसूली के मामले में इस तरह की लापरवाही को भूल का नाम देना, शायद भूल शब्द को शर्मशार करने जैसा होगा।
इस मामले को देखकर लगता है कि प्रशासन नेताओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकती, शायद प्रशासन के आला अधिकारियों को यह खोफ़ हो की उन्होने नेताओं पर कार्यवाही की तो कहीं नेता उनकी कार्यप्रणाली का कच्चा चिट्ठा जनता के सामने ना रख दे, लेकिन जिसका कोई कच्चा चिट्ठा ही ना हो उसका नेता क्या बिगड़ेगा?
दादरा नगर हवेली के समाहर्ता अपनी ईमानदारी के लिए दादरा नगर हवेली में काफी मशहूर है ऐसे में वाज़िब सी बात है की उनका कोई कच्चा चिट्ठा अभी तक नेताओं के हाथ नहीं लगा, जिसके बाहर आने से उनकी कमीज़ पर कोई दाग लगे। शायद इसी लिए दादरा नगर हवेली की जनता यह मांग कर रही है की समाहर्ता महोदय, इस मामले की तत्काल जांच करें और अब तक किराया वसूली मामले में जिन अधिकारियों ने खुली छूट दे रखी थी, उन सभी अधिकारियों को तत्काल निलंबित करें। वैसे समाहर्ता इस मामले में जांच करते है या नहीं तथा मामले से संबन्धित अधिकारियों को निलंबित करते है या नहीं, यह तो समय आने पर ही पता चल पाएगा। लेकिन अगर समाहर्ता इस मामले में भी उसी तरह आंखे बंद कर बैठे रहे जैसे पतंग बार एण्ड रेस्टोरेन्ट के मामले बैठे रहे, तो जनता को यह अवश्य पता चल जाएगा की उनका कच्चा चिट्ठा भी नेताओं के पास सुरक्षित है और वह भी गुड खाते है। शेष फिर।