
संध प्रदेश दमन के ओधोगिक संगठन पर वास्तव में उधोगपतियों की हुकूमत चलती है या दमन के राजनेताओं की यह सवाल एक बार फिर से ताजा हो गया, इससे पहले भी यह सवाल कई बार खड़ा हो चुका है की आखिर उधोगपति अपनी इच्छा से अपने मत से, अपने अध्यक्ष को कब चुनेंगे, आखिर कब वह समय आएगा जब उधोगिक संगठन से राजनीतिक हस्तक्षेप खत्म होगा।
पिछले कई वर्षों से देखा गया है की दमन ओधोगिक संगठन का अध्यक्ष कोन बनेगा, इसका निर्णय दमन के उधोगपतियों द्वारा हुए किसी इलेक्सन या चुनाव से नहीं, बल्कि कांग्रेस के पूर्व सांसद दहयाभाई पटेल तथा कांग्रेस नेता केतन पटेल के इशारो और दबाव में होता रहा, यह और बात है सभी चुनावो में दमन ओधोगिक संगठन के अधिकतर सदस्य उपस्थित रहते है, लेकिन यदि बंद कमरे में निर्णय लेने के बाद, उनकी उपस्थिती केवल फ़ैसला सुनने के लिए हो तो फिर उनकी उपस्थिती भी अपने आप में एक सवाल है।
DIA Daman, daman industries association
वैसे यह पहला मामला नहीं जब दमन ओधोगिक संगठन के अध्यक्ष पद नियुक्ति का फ़ैसला डहयाभाई पटेल तथा केतन पटेल ने लिया हो, इससे पहले भी कई बार ऐसे फैसले देखे जा चुकू है, पूर्व में पारिख को जब अध्यक्ष बनाया गया तब भी इस प्रकार के सवाल खड़े हुए था, और आज जब सत्येन्द्र कुमार से प्रभार लेकर आर के कुंदानी को दिया गया तो एक बार पुनः यह सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर कब तक राजनैतिक दबाव में उधोगपतियों के हिमायती चुने जाएंगे!
दमन ओधोगिक संगठन एक बार पुनः राजनैतिक अखाड़े में तब्दील!
वैसे दमन के उधोगिक संगठन पर जिस राजनैतिक दबाव की बात हम कर रहे है, उस राजनैतिक दबाव को दमन के कई उधोगपति एकांत में तो बे-फ़िक्री से स्वीकार स्वीकार करते है, लेकिन उधोगिक इकाइयों के हितों की बात करने वाले उस दबाव के बारे में सार्वजनिक तौर पर खुलकर बोलने से भी कतराते है।
DIA Meeting, daman industries association
वैसे इस बार डीआईए में जो राजनैतिक हस्तक्षेप्त हुआ है उसे पूर्व में हुए समझोते और वचन का चोला पहनाया गया है, लेकिन किसी ने यह नहीं बताया की की इसकी आवश्यकता क्या थी। आखिर क्या कारण था जिसके चलते एक वर्ष में डीआईए को अपना अध्यक्ष बदलना पड़ा, ऐसा लगता है की दमन ओधोगिक संगठन को भी दमन मुनिसिपल काउंसियल में एक एक वर्ष वाला हो रहा कुर्सी का खेल इतना पसंद आने लगा है कि अब वह भी डीआईए में वही खेल खेलना चाहते है।
आने वाले समय में दमन ओधोगिक संगठन के सभी सदस्यो तथा उधोग्पतियों को इस मामले में विचार करने की आवश्यकता है की इससे दमन के ओधोगिक इकाइयों का विकास होगा या राजनीति का और राजनेताओ का विकास होगा! शेष फिर।