
संध प्रदेश दमन-दीव विधुत विभाग के कार्यपालक अभियंता मिलिंद इंगले की कार्यप्रणाली एक बार फिर से सवालो के घेरे में है, हालांकि इससे पहले भी मिलिंद इंगले पर कई आरोप लगे, लेकिन भ्रष्टाचार के मेनेजमेंट में माहिर बताए जाने वाले इस अभियंता ने सबको मेनेज कर लिया हो, शायद यही कारण है की अब तक किसी जांच का सामना किए बिना यह अभियंता अभी तक अपनी चांदी बखूबी काट रहा है!
इस बार भी जांच होगी या नहीं यह तो प्रशासन जाने, लेकिन इस मामले को देखने के बाद यदि प्रशासक प्रफुल पटेल तथा एस-एस यादव ईमानदार है तो उनके मन में यह सवाल अवश्य उत्पन्न होगा की क्या इंगले को दानह विधुत निगम का अतिरिक्त प्रभार देना सही था?
दमन-दीव विधुत विभाग द्वारा जारी किए गए, कुछ एक बिजली बिलों की प्रतियों ने एक बार फिर से विधुत विभाग के अभियन्ताओं की पोल खोल कर रख दी है, मात्र 100 रुपये से 200 रुपये के बिजली बिलों से कैसे सालों तक उधोग चलते रहे इसका जवाब तो विधुत सचिव के पास ही सो सकता है। सितंबर 2015 से लेकर अगस्त 2017 तक कई कंपनियों के बिलों में भारी-गोल माल देखने को मिला है, अब यह गोलमाल कैसे हुआ क्यो हुआ किस लिए किया गया तथा किसके कहने पर किया गया? इन सवालों का जवाब भी विधुत सचिव के पास होना चाहिए।
जब भी जनता के पैसों की खुली लूट का मामला हो, सभी नेता चुप्पी साध लेते है, इस फोटो में ही देख लीजिए चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ बोलने वाले, भ्रष्टाचार में हम साथ साथ है की भूमिका में दिखाई देते है!
वैसे तो विधुत सचिव एस एस यादव को पता ही होगा कि, अभियंता मिलिंद इंगले तो विधुत विभाग के वो राजा बताए जाते है जनके खिलाफ सेकड़ों शिकायतों पर भी अब तक किसी प्रशासक ने उनसे सवाल नहीं किया, चाहे दमन-दीव भाजपा सांसद लालू पटेल हो या दमन-दीव कांग्रेस अध्यक्ष केतन पटेल आज तक तो ऐसा देखा नहीं गया की किसी ने विधुत विभाग के इस अभियंता के खिलाफ अपना मुह खोला हो!
वैसे देश में तो अब तक कोई ऐसा छोटा या मोटा या लधु उधोग भी देखने को नहीं मिला जहां 100 रुपये से 200 रुपये प्रतिमाह बिजली बील आता हो, लेकिन प्रशासक प्रफुल पटेल के राज में यह नामुमकिन काम प्रशासक के खास अभियंता मिलिंद इंगले ने करके दिखा दिया है, हम खास इस लिए कह रहे है क्यो की जनता इन्हे प्रशासक का खास मानती है क्यो की जनता जिसके लिए सकड़ों पर उतरी, उसी अभियंता इंगले को प्रशासक प्रफुल पटेल ने दानह का अतिरिक्त प्रभार दे दिया, तो फिर जनता खास ना माने तो क्या माने?
100 रुपये से 200 रुपये के अलावे 1000 रुपये से 2000 रुपये के बील भी देखने को मिले है जहां बड़ी बड़ी मशिने चल रही है, अब विधुत विभाग की इस कार्यप्रणाली को बिजली बचाओ नाम दिया जाए या बिजली लुटाओ का? यह सवाल इस लिए की विधुत विभाग तथा विधुत विभाग के अभियन्ताओं की बापोती तो, विधुत विभाग है नहीं की वह जिसे चाहे जितना बील भेज दे, ना ही किसी अभियंता का निजी धन है जिसे विधुत विभाग अपने खास लोगो पर लूटा रहा है? यह तो जनता की वह गढ़ी कमाई है जो सालों से जनता कभी इन्कम तेक्स तो वेट टेक्स तो कभी जीएसटी के नाम पर सरकारी तिजोरियों में भर्ती आई है!
क्रांति भास्कर के पास बील भी है और उन कंपनियों के नाम भी, लेकिन उनके नाम का खुलासा क्रांति भास्कर केवल केंद्रीय जांच एजेंसी तथा सीबीआई के सामने करेगी, यह इस लिए क्यों की दमन-दीव व दानह प्रशासन मे तो विधुत विभाग तथा इस विभाग के अभियन्ताओं के खिलाफ पहले से ही, सेकड़ों शिकायते लंबित है, और उन शिकायतों को लंबित रखकर जैसे प्रशासन विधुत विभाग के अभियंता इंगले को मोके पर मोके देती आई है वैसा दुबारा ना हो इस लिए यही मुनासिब है की इस मामले की जानकारी सीधे केंद्रीय जांच एजेंसी को दी जाए। हा क्रांति भास्कर उन तमाम बिजली बिलों तथा कंपनियों के नामों का खुलासा अवश्य करेगी लेकिन जांच एजेंसियों को सबूत देने तथा जांच शुरू होने के बाद, क्यो की हो सकता है की यदि जांच शुरू होने से पहले इस मामले का पूरा खुलासा कर दिया गया तो विधुत विभाग के भ्रष्ट अभियनता अपने काला कारनामों के दस्तावेज़ मिटाने का प्रयास कर सकते है। शेष फिर।