
संघ प्रदेश दमण-दीव तथा दादरा नगर हवेली में ऐसे कई विभागीय अधिकारी है जो मुलाक़ात करने आयी हुई जनता के मोबाइल अपने कार्यालय के बाहर ही जमा करवा लेते है। कार्यालय के बाहर मोबाइल जमा करवाने के बाद ही जनता को अधिकारियों के कार्यालय, निजी कमरे में प्रवेश की अनुमति दी जाती है। अब ऐसा क्यो है और सरकारी अधिकारियों को किस बात का भय है, जिसके चलते वह जनता को अपने मोबाइल के साथ अंदर आने नहीं देते? क्या अधिकारी जनता के मोबाइल को बाहर इस लिए जमा करवा देते है ताकि अंदर हुई बात या सौदे-बाजी को जनता बाहर आकर सबके सामने सबूत के साथ पेश ना कर सके? यदि ऐसा नहीं है तो फिर अधिकारी जनता से उनके मोबाइल कार्यालय के बाहर क्यो रखवा लेते है?
जनता कई कारणो से अधिकारियों से मिलने जाती है, कई समस्यों पर अधिकारियों से बात करती है, कई उधोगपति, अधिकारियों के पास अपने-अपने उधोगों की फ़ाईले पास करवाने जाते है। अधिकारी कभी भी जनता को लिखित आश्वासन नहीं देते। अधिकारी ने जो कहा जनता को उसी पर विश्वास कर वहा से निकल जाना पड़ता है। ऐसे में जनता के पास सच को कैद करना का एक-मात्र विकल्प होता है, उनका आधुनिक मोबाइल, जिसमे वह सच कैद कर सकते है और यदि अधिकारी किसी काम के लिए या कोई फाइल पास करने के लिए पैसे की मांग करे, तो सबूत के तौर पर उसका विडियों बना सकते है लेकिन यह तब मुमकिन है जब अधिकारी से मिलने वाले के पास अपना केमेरे वाला मोबाइल या अन्य कोई साधन हो।
- मोबाइल तो बाहर रखवा दिया अब अंदर क्या दुर्व्यवहार हुआ किसी को पता नहीं।
- कार्यालय में ऐसा क्या है जिसका फुटेज या विडियो सार्वजनिक हो गया तो भूचाल आ जाएगा?
- क्या सांसद तथा पूर्व सांसद का मोबाइल भी बाहर रखवा दिया जाता है, या फ़िर उनके मोबाइल में सच कैद करने वाला कैमरा ही नहीं होता?
लोक तंत्र में जनता को मालिक कहा गया है और सरकारी कर्मचारी को नोकर। अब ऐसे में कोई अधिकारी यानि नौकर अपने मालिक से मिलने से पहले, उसे यह आदेश दे, कि अपना मोबाइल बाहर जमा करने के बाद में मिलने आइये, तो यह जनता के अधिकार का हनन होगा। खेर यह हनन हो रहा है किस किस विभाग एवं विभागीय अधिकारी द्वारा हो रहा है यह जनता भी जानती है और प्रशासन भी। लेकिन अब यह हनन कब तक जारी रहेगा? क्या प्रशासन के अधिकारी इसी तरह जनता के मोबाइल अपने कार्यालय, कमरे के बाहर रखवाते रहेंगे या इस ख़बर के बाद प्रशासक प्रफुल पटेल मामले में दखल देकर अधिकारियों को ऐसा ना करने के निर्देश देंगे? क्या बदलाव होगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन अधिकारियों का यह रवैया कही ना कही उनकी कार्यप्रणाली को संदेहात्मक बना रहा है। शेष फ़िर।
“अधिकारी केवल एक मोबाइल बाहर जमा नहीं करवा रहा है बल्कि उन तमाम सबूतो का स्त्रोत नष्ट कर रहा है जो मोबाइल के केमेरे में जरूरत पड़ने पर विडियों के रूप में कैद हो सके।“
यदि जनता से अधिकारी ने किसी काम के लिए या कोई फाइल पास करने के लिए पैसे मांगे, और वह उसकी शिकायत करने के लिए प्रशासक के पास गया, तो प्रशासक कहेंगे की सबूत क्या है? जबकि सबूत का स्त्रोत तो अधिकारी के अधिकार ने कार्यालय के दरवाजे के बाहर ही जमा करवा दिया।