
आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी दमण-दीव और दादरा नगर हवेली की उतनी तरक़्क़ी नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी और नेताओं की इतनी तरक़्क़ी हो गई जितनी नहीं होनी चाहिए थी। आज भी दूर सुदूर इलाकों में कोई उल्लेखनीय विकास नहीं हुए और आज भी दमण-दीव और दादरा नगर हवेली के अधिकतर ग्रामीण विस्तार उपेक्षित पड़े हुए है, कही पानी नहीं है तो कही बिज़ली नहीं है, कही शिक्षा नहीं है तो कही सड़क नहीं है, कही स्वास्थय नहीं है तो कही रोजगार नहीं है और इन सबके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ दादरा नगर हवेली और दमण-दीव के नेता है, अब उक्त सभी नेताओं में से अधिक ज़िम्मेवार कौन है यह सभी नेता एक बैठक बुलाकर स्वय ही तय कर ले। सच पूछो तो दादरा नगर हवेली और दमण-दीव के किसी भी नेता ने प्रदेश और प्रदेश की जनता के लिए कुछ ख़ास नहीं किया आज नेता जो अपनी उपलब्धियां गिना रहे है जनता का कहना है वह सब तो केन्द्र सरकार की देन है। यह कहना गलत नहीं होगा कि केन्द्र सरकार के प्रोजेक्टों में, दोनों संध प्रदेशों के सांसदो ने फीता काट कर, महज दर्शक की भूमिका निभाई है।
आज जो विकास दिखाई दे रहा है वह अखबारों में ज़्यादा दिख रहा है हक़ीक़त तो यह है अगर शहरी क्षेत्रो को छोड़ दिया जाए तो दमण-दीव और दादरा नगर हवेली का ग्रामीण भाग आज भी अविकसित है आज भी यहां की अधिकांश लोगो कि जीवनशैली गरीबी रेखा से ऊपर नहीं उठ पाई है। आज भी यहां के वनवासी अभाव में जी रहे है।
पाठको की जानकारी के लिए बता दे, दादरा नगर हवेली में मोहन डेलकर ने 20 साल तक और नटु पटेल ने 10 साल तक शासन किया है इससे पहले भी 3-4 सांसदो ने दादरा नगर हवेली में राज किया मगर सच पूछो तो किसी ने भी आदिवासियों के लिए कुछ ख़ास नहीं किया। आज भी दानह के आदिवासी अपनी गरीबी पर रो रहे है और सोच रहे है कि आदिवासियों के नाम पर राजनीति करते करते कैसे दानह के कई नेता करोड़पति बन गए।
उसी तरह दमण-दीव में लालू पटेल ने 10 वर्ष और डाहाया पटेल ने 10 वर्ष सत्ता संभाली इसके अलावा दमण-दीव में भी 2-3 सांसदो ने राज किया मगर दुर्भाग्य से यहां भी यही हाल है जो दानह का है। यहां भी नेताओं ने कुछ नहीं किया। दमण-दीव में आज भी लोग ए-पी-एल, बी-पी-एल और ए-ए-वाई की ज़िंदगी जी रहे है कम कीमत में राशन के लिए घंटो लाइन में खड़े रहने को मजबूर है!
जनता का मानना है कि दमण-दीव और दादरा नगर हवेली के पक्ष और विपक्ष दोनों के नेता सेम केरेक्टर के है कोई भी जीते कोई फर्क नहीं पड़ता सब एक जैसे ही है, यह कहना गलत नहीं होगा कि एक नागनाथ है तो दूसरा साँपनाथ है! केतन पटेल भी वही काम करता है जो डाहया पटेल ने किया लालू पटेल भी वही काम कर रहा है जो केतन पटेल कर रहा है अगर कोई नया नेता जीत गया तो वो भी वही करेगा जो पूर्व सांसदो ने किया है यही हालत दादरा नगर हवेली कि है वहां भी नटु पटेल वही काम कर रहा है जो मोहन डेलकर ने किया था और जीतने वाला सांसद भी वही काम करेगा जो नटु पटेल ने किया है, वैसे आपको बता दे जिन कामों के बारे में हम बात कर रहे है वह जनसमस्यों से संबन्धित है जनसमस्यों के निपटारे में सभी नेताओं की कार्यशेली एक सी देखी गई। वैसे सभी नेताओं की कार्यशेली और कार्यप्रणाली को देखकर लगता है कि सभी नेता एक ही फांदेबाज स्कूल से निकले हुए है सभी का हेडमास्टर एक था तो छात्र कैसे अलग अलग होंगे!