
दादरा नगर हवेली में चुनाव का माहोल है। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए नेताओं ने नामांकन दाखिल कर दिए है। दादरा नगर हवेली लोकसभा सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित है। आदिवासी के बारे में अधिकतर लोग, आमतौर पर आदिवासी शब्द को सीधा गरीबी से जोड़कर देखते है, यह सही है की आज भी अधिकतर आदिवासी आर्थिक तौर पर कमजोर है। लेकिन दादरा नगर हवेली में ऐसे आदिवासी नेता भी है जिनके पास बे-शुमार दौलत है, बड़ी बड़ी जमीने है, बड़े बगले है, बड़ी गड़िया है और बोडीगार्ड भी है! बड़ी हैरत की बात है कि यह बे-शुमार दौलत उनही आदिवासियों की बदौलत है जिनके विकास और उत्थान का वह दंभ भरते है। गरीब और आदिवासियों के विकास के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं की आम्दानी देखकर लगता है की राजनीति गरीबो के लिए नहीं बल्कि अपनी अपनी ऐशगाह आबाद करने के लिए की गई। पाँच साल में एक बार लोकसभा चुनाव आते है जनता अपने मत से सांसद चुनती है, फिर क्या होता है? अब यह सवाल, यह ख़बर पढ़ने के बाद जनता अपने आप से करें तो शायद जनता को इसका जवाब सवय ही मिल जाए।
दादरा नगर हवेली कि आदिवासी जनता ने, मोहन डेलकर को 6 बार सांसद चुनकर दिल्ली भेजा। मोहन डेलकर 1989 में पहली बार लोकसभा सांसद बने और 2004 तक मोहन डेलकर ही दादरा नगर हवेली से लोकसभा का चुनाव जीतते रहे। 1989 से 2004 तक लगातार जीत के सफ़र में, मोहन डेलकर ने कई बार आदिवासियों के विकास के नाम पर राजनीतिक दल बदले। अब जिसके विकास के लिए दल बदले उसका विकास कितना हुआ और मोहन डेलकर ने अपना विकास कितना किया? इस सवाल का सवाब जनता जानना चाहती है। 1989 से 2004 तक जब भी मोहन डेलकर ने दल बदले, आदिवासियों से सहयोग मांगा, जनता ने भी मोहन पर भरोसा भी दिखाया और मोहन का साथ भी दिया। लेकिन जब आदिवासियों ने, मोहन की बढ़ती दौलत और छका-चौंध देखी, बड़ी कोठी, बड़ी बड़ी गाडियाँ और बोडीगार्ड देखे तो जनता को लगने लगा की शायद विकास रास्ता भूल गया है, विकास एक ही दिशा में आगे बढ़ रहा है और विकास को मोहन का घर ही दिखाई दे रहा है। शायद यही सब देखकर 2009 के लोकसभा चुनाव में जनता ने मोहन को हार का स्वाद चखा दिया। 2009 का लोकसभा चुनाव मोहन हार गए। 2009 में जनता ने नटु पटेल को अपना सांसद चुना। नटु पटेल ने जनता को भरोसा दिलाया था की वह वो कर दिखाएंगे जो मोहन नहीं कर सके। 2009 के बाद 2014 लोकसभा चुनाव आया, 2014 लोकसभा चुनाव में भी जनता ने नटु पटेल को अपना सांसद चुना।
अब सवाल यह है की जब मोहन डेलकर ने आदिवासियों के विकास के लिए राजनीति में कदम रखा तब उनकी एवं उनके परिवार की सालाना आम्दानी कितनी थी? उनके और उनके परिवार के नाम पर संपत्ति कितनी थी? और जब नटु पटेल ने आदिवासियों के विकास के लिए राजनीति में कदम रखा तब उनकी एवं उनके परिवार की सालाना आम्दानी कितनी थी? उनके और उनके परिवार के नाम पर संपत्ति कितनी थी? और आज कितनी है?
मोहन डेलकर ने 2019 लोकसभा चुनाव में अपने तथा अपने परिवार की आय के बारे में जो जानकारी दी है वह जनता के होश उड़ाने वाली है क्यो की जितनी आम्दानी मोहन डेलकर तथा मोहन के परिवार की है उतनी आम्दानी तो एक आम आदिवासी कड़ी मेहनत के बाद भी नहीं कर सकता, फिर 24 घंटे समाज सेवा करने का दावा करने वाले मोहन डेलकर और मोहन डेलकर के परिवार ने इतनी तरक्की कैसे की? इतनी आय कैसे हुई? इतनी संपत्ति कहा से आई? यदि मोहन डेलकर इस तरक़्क़ी का राज़ दादरा नगर हवेली की आदिवासी जनता को समझा दे तो दादरा नगर हवेली में कोई गरीब नहीं रहेगा!
वैसे आम्दानी के मामले में और तरक़्क़ी के मामले में नटु पटेल भी मोहन से पीछे नहीं है। नटु पटेल और नटु पटेल के परिवार की आम्दानी और संपत्ति भी मोहन डेलकर से कम नहीं है। अब यह समझ में नहीं आता की संसद में व्यस्त, जनता के विकास में व्यस्त इन नेताओं को इतना समय कब और कैसे मिलता है जिसके चलते वह इतनी तरक़्क़ी कर लेते है? समाज सेवा में व्यस्त रहने का दावा करने के बाद, इतना मुनाफ़ा कमाने वाले तथा अपने आप को आदिवासी नेता कहने वाले ऐसे करोड़पति आदिवासी नेता, दादरा नगर हवेली की घरती पर यही दो महारथी दिखाई देते है।