
प्रशासक आशीष कुन्द्रा व विकास आयुक्त संदीप कुमार ने श्री विनोबाभावे सिविल अस्पताल का ना जाने कितनी बार निरक्षण किया होगा, लेकिन वह निरक्षण खुली आँखों से किया था या डाक्टर दास द्वारा पेश की गई नोटो की पट्टी बांध कर? यह सवाल दानह के हर उन नागरिक की जुबान पर होगा, जब वह यह छाया-चित्र देखेगा! वैसे तो प्रधान मंत्री श्री मोदी के देखा-देखी, प्रशासक आशीष कुन्द्रा भी जाडू लेकर सड़क पर आ गए, लेकिन शायद उन्हे भी फोटो खिचवाने का चस्का लगा होगा वरना काम करने के फितूर की बात होती तो आज दानह में इस प्रकार की गंदगी नहीं मिलती।
अस्पताल के मुख्य-द्वार पर मोजूद केंटीन की हालत के साथ साथ यहां रख-रखाव व खाद्य सामग्री देखले तो पता चल जाएगा की यहां केंटीन के नाम पर अस्पताल में दाखिल होने का टिकिट बतौर शुल्क लेकर दिया जाता है, भले-ही अंदर इलाज मुफ्त में क्यों न हो! अगर यहां की साफ सफाई और गंदगी का आंकलन करे तो पता चलेगा की हाउस्किपिंग व क्लीनिंग स्टाफ कितने व्यस्त रहते है, बिलकुल प्रशासक की तरह जो हफ्ते में कुछ दिन आकार अपनी हाजरी पूरी कर जाते है। अंदर मरीजों की लाइन देखे तो पता चलेगा की क्रांति भास्कर ने पिछले दिनों जो खबर छापी थी कि संध प्रदेश में मुफ्त की दवा भी मिलती है और मुफ्त की बीमारी भी तो वो खबर कितनी सही थी।
सोचने वाली बात है की यह संध प्रदेश का सबसे व्यस्त और विश्वसनीय अस्पताल है, तथा आय-दिन यहां प्रशासन के बड़े बड़े अधिकारियों का आना जाना लगा रहता है, इसके बाद भी जगह-जगह कूड़ा, गंदगी, और साफ सफाई के अभाव में यहां आए मरीजों पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है यह भला एक चिकित्सक से अधिक कोन जा सकता है, लेकिन अपने पद के मद में चूर डाक्टर दास शायद यह भूल गए की उनपर चाहे दानह के जिस भी बड़े अधिकारी का हाथ हो, दानह की जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता! लेकिन उक्त अधिकारी की यह लापरवाही भी शायद इस बात का एक जीता जागता सबूत है की अब तक प्रशासक व अन्य वरीय अधिकारी इस अस्पताल में कैसा दौरा करते रहे है।