
VALSAD | VAPI | किसी भी प्रॉपर्टी कि खरीद-बिक्री में (नगद) काले-धन कि लेन-देन से सभी वाकिफ़ है। दरअसल प्रॉपर्टी खरीदने वाला और प्रॉपर्टी बेचने वाला दोनों यह चाहते है कि प्रॉपर्टी पर कम से कम स्टेम्प ड्यूटी देनी पड़े, इसी लिए वह प्रॉपर्टी कि कीमत को कम बताकर बाकी कि रकम का नगद लेन-देन कर लेते है, जिससे सरकार को करोड़ों का चुना लगता है। जब अधिकतर लोग प्रॉपर्टी कि किमते कम बताकर स्टेंप ड्यूटी कि चोरी करते है तो उसका फाइदा अब सरकारी अधिकारी कैसे उठाते है यह भी जान लीजिए।
एक बिल्डर ने अपना नाम ना बताने कि शर्त बताया कि आयकर अधिकारियों तथा जमीन मामलों में टैक्स संबन्धित अधिकारियों को सब पता होता है उन्हे पूरी जानकारी होती है कि जमीन का असली भाव बाजार में क्या है और प्रॉपर्टी खरीदने वाला और बेचने वाला सरकार को चुना लगाने के लिए तथा टैक्स और स्टेम्प ड्यूटी बचाने के लिए जमीन कि कीमत कम बताकर दस्तावेज़ कर रहा है। यह सब जानकारी रखने वाले सरकारी अधिकारी भी इसका भरपूर फाइया उठाते है वह भी अपने तथा अपने परिवार के सदस्यों और विश्वासपात्र के नाम पर करोड़ों कि क़ीमत वाली प्रॉपर्टी कि रकम को चंद लाख कि प्रॉपर्टी दिखाकर अपने बे-मानी और भ्रष्टाचार के पैसे को ठिकाने लगा देता है।
वित्त मंत्री श्री निर्मला सीतारमण को चाहिए कि देश के बड़े बड़े आयकर अधिकारियों पर अपनी पेनी नजरे रखे और समय रहते आयकर अधिकारियों तथा आयकर अधिकारियों के सगे-संबंधी कि संपत्ति कि जांच शुरू करें, जिससे देश को चुना लगाने वालो पर नियमानुसार कार्यवाही कि जा सके।
दरअसल किसी भी ( Income Tax Officer ) सरकारी अधिकारी के लिए करोड़ों कि जमीन प्रॉपर्टी, बाज़ार भाव में खरीदना लगभग मुमकिन है क्यो कि प्रतिमाह वेतन प्राप्त करने वाले सरकारी अधिकारी जमीन और प्रॉपर्टी के लिए करोड़ों कहा से लाए, इसका हिसाब उन्हे सरकार को देना होता है। ऐसे में ( Corrupt Income Tax Officer ) सरकारी अधिकारी भी करोड़ों कि जमीन को चंद लाख रुपये कि जमीन या प्रॉपर्टी बताकर अपने ऊपर उठने वाले तमाम सवालों को कब्र में दफन कर देते है। कुल मिलाकर यह कह सकते है कि जनता जिस प्रॉपर्टी कि रकम को कम दिखाकर सरकार को चुना लगती है उसी प्रॉपर्टी को जब कोई सरकारी अधिकारी खरीदता है और उसके असली दाम सरकार को नहीं बताता है तो वह अपने भ्रष्टाचार के उस पैसे को भी ठिकाने देता है जो उसने जनता से वसूल किया था और जिसकी जानकारी जांच एजेंसियों को मिली तो उसे हवालात कि हवा खानी पड़ सकती है। वैसे बात यही खत्म नहीं होती जनता को जहां बिल्डर को, प्रॉपर्टी खरीदने के लिए नगद ( काला-धन ) देना पड़ता है वही सरकारी अधिकारियों को बिना काले-धन कि लेन-देन के प्रॉपर्टी बेचने के लिए बिल्डर विवश हो जाता है। बिल्डर को सरकारी अधिकारियों से उतनी ही रकम मिलती है जितनी रकम के बिल्डर दस्तावेज़ तैयार करता है जबकि जनता को बाकी कि रकम नगद में अदा करनी पड़ती है। अब यह नामुमकिन कैसे मुमकिन होता है इस पर चर्चा करते है।
यह एक उदाहरण है।
मतलब अगर जनता एक करोड़ कि दुकान खरीदे ओर उसका रजिस्ट्रेशन दस्तावेज़ 50 लाख हो तो जनता को 50 लाख नगद और 50 लाख वाईट में चुकाना पड़ता है, वही अधिकारी बिल्डर से वही दुकान खरीदे तो उसे 1 करोड़ वाली दुकान 50 लाख में मिल जाएगी, क्यो टैक्स चोरी और काले-धन को पकड़ने वाले ( Income Tax Officer ) अधिकारियों से बिल्डर तो काला धन मांग नहीं सकता।
Sachi Heights, Haria Park,Dungra, Vapi
596 स्क्वेयर फिट की दुकान, प्रति स्क्वेयर फीट कीमत 11000/- कार्पेट मिलेगा सिर्फ 357 स्क्वेयर फिट ओर पैसे लेगा 596 स्क्वेयर फिट के। दुकान की कुल कीमत 6556000/- दस्तावेज़ 3500/- के हिसाब से मतलब दस्तावेज़ 2086000/- रुपये के, अब बाकी बचा काला-धन 4470000/- रुपये बिल्डर ने कैसे वसूला और कैसे ठिकाने लगाया होगा?

Fortune, Landmark – GIDC Vapi
ग्राउंड फ्लोर कि दुकान, 864 स्क्वेयर फिट, दस्तावेज़ 5700/- रुपये प्रति स्क्वेयर फिट के हिसाब से। बिल्डर को क़ीमत चाहिए 16500/- रुपये प्रति स्क्वेयर फिट के हिसाब से।
मतलब 864 स्क्वेयर फिट वाली दुकान का 5700/- रुपये प्रति स्क्वेयर फिट के हिसाब से दस्तावेज होगा 4930500 रुपये का और 16500 रुपये प्रति स्क्वेयर फिट के हिसाब से तो 864 स्क्वेयर फिट कि दुकान कि क़ीमत होती है 14256000/- अब बाकी रकम बिल्डर जनता से तो वसूल लेगा, लेकिन यदि टैक्स चोरी पकड़ने वाले आयकर अधिकारियों ने या उनके रिशतेदारों ने दुकान खरीदी तो क्या उनसे बाकी बची रकम (नगद) काले-धन में वसूल कि जाएगी?
जब किसी बिल्डर या बड़े भूमाफिया कि बड़ी टैक्स चोरी का भंडा फूटता है तो टैक्स चोरी पकड़ने वाले ( Vapi Income Tax Officer ) अधिकारियों के लिए अपनी ऐशगाह आबाद करने का एक नया स्त्रोत इजात हो जाता है। सरकार कि तिजोरी में धन आता है तो अधिकारियों कि झोली भी भर जाती है। अधिकारी उसी बिल्डर से, उसी प्रोजेक्ट अथवा उसी बिल्डर के किसी अन्य प्रोजेक्ट में फ्लेट, दुकान खरीद लेते है, यह खरीद-बिक्री आमतौर पर होने वाली सामान्य बिक्री कि तरह नहीं होती, इस खरीद बिक्री में सिर्फ वाईट मनी का लेन-देन होता है। जितनी रकम दस्तावेज़ में दिखाई जाती है उतनी ही रकम बिल्डर को अदा कि जाती है बाकी का बचा काला धन किसी ( Income Tax Officer ) सरकारी अधिकारी से वसूलना बिल्डर के लिए नामुमकिन से कम नहीं, और जब सवय टैक्स चोरी और काले-धन को पकड़ने वाले अधिकारी बिल्डर से प्रॉपर्टी खरीदे तो बिल्डर कि क्या मजाल कि वह उस ( Corrupt Income Tax Officer ) अधिकारी से काले-धन कि मांग करें!
बिल्डरों कि टैक्स चोरी में मदद कर, करोड़ों कि संपत्ति जमा करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों का भांडा फोड़ जल्द…
वैसे उक्त पूरी ख़बर के बाद जनता चाहे तो अपने नज़दीकी बिल्डर से फ्लेट ओर दुकान के भाव पता कर ले बिल्डर उन्हे स्वय ही बता देंगे कि वह कितना सफ़ेद धन लेंगे और कितना काला धन, बिल्डरों से जानकारी मिलने के बाद यदि जनता चाहे तो आयकर अधिकारियों से भी सवाल कर सकती है कि आखिर बिल्डर दस्तावेज से अधिक रकम क्यो वसूल रहे है?
सीबीआई भी यदि बिल्डरों और अधिकारियों कि लिस्ट बनानी अभी से शुरू कर दे तो आने वाले समय उसे जांच करने में उसे अवश्य ही आसानी होगी, क्यो कि भ्रष्टाचार के मामले में सरकार द्वारा कई कड़े कदम देखने को मिले इस लिए यह तो तय है कि समय आने पर ऐसे मामलों में सरकार कड़े कदम उठाएगी और जांच भी होगी।
अब बाजार में चल रही एक करोड़ क़ीमत वाली प्रॉपर्टी का दस्तावेज़ कितना होता है यह जनता जानती है यदि नहीं जानती तो जानने के लिए क्रांति भास्कर हिन्दी अखबार पढ़ती रहे, क्रांति भास्कर अपने पिछले अंकों में बिल्डरों द्वारा करोड़ों कि टैक्स चोरी और काले-धन कि लेन-देन तथा आयकर अधिकारियों कि नाकामी और कामचोरी पर कई खबरें प्रकाशित कर चुकी है और क्रांति भास्कर टैक्स चोरी के लिए खिलाफ आगे भी अपनी मुहिम जारी रखेगी।
वैसे वलसाड, वापी दमण, और दादरा नगर हवेली में कितने बिल्डरों से, अब तक कितने अधिकारियों ने, कितनी प्रॉपर्टी खरीदी, किस रकम कि प्रॉपर्टी किस रकम में खरीदी और अपने भ्रष्टाचार के पैसे को कैसे ठिकाने लगाया? इस सवाल का जवाब तो तब पता चलेगा जब ऐसे मामलों में सीबीआई का वित्तीय खंड मामले में जांच शुरू करें। वैसे जो जानकारी सामने आई है उसे देखकर तो यही लगता है ऐसे मामलो कि जांच सीबीआई के अलावे किसी अन्य जांच एजेंसी के बस कि बात दिखाई नहीं देती।
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